अखराई - प्रेम रंजन अनिमेष का रचना संसार
मेरा ये ब्लॉग आपको समय समय पर मेरे सृजन संसार से परिचित करायेगा । आपके सुझावों और प्रतिक्रियाओं का स्वागत है ।
शनिवार, 30 मार्च 2024
जीवन रंग
रविवार, 31 दिसंबर 2023
एक साल, तीन कविता संग्रह और रचना संसार पर एकाग्र अंक
गुरुवार, 31 अगस्त 2023
उठान..
'अखराई' के इस भाव पटल पर इस बार साझा कर रहा हूँ अपनी कविता ‘ उठान ’ । इसे मेरे
प्रकाश्य कविता संग्रह ' नींद में नाच ' में संकलित कविता ' उत्थान ' की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है । ' उठान ' मेरे कविता-क्रम ' स्त्री
पुराण स्त्री नवीन ' का हिस्सा है, जो आप सबकी शुभेक्षा से संभवतः आगे कभी
पुस्तकाकार प्रकाशित हो
~ प्रेम रंजन अनिमेष
उठान
µ
पहले उसकी
पलकें उठीं
फिर चेहरा पूरा
उसके बाद
वह खड़ी हो गयी
पैरों पर अपने
एड़ियों पर उचकी
और हाथ बढ़ाये
छूने के लिए
आसमान के चाँद सितारे
देखा सबने
देखते देखते
कद उसका
लगा बढ़ने
परुष पुरुष को
बरदाश्त कहाँ
स्त्री का
अपने से ऊँचा उठना
कौन जाने
क्या कर बैठे
ऐसे में
आदमी वो
जो हो ही नहीं
औरत न हो तो
हो भी
तो रह न पाये
बना बसा कर
स्त्री अगर नहीं बचाये...
µ
✍️ प्रेम रंजन
अनिमेष
शनिवार, 29 जुलाई 2023
आनेवाले कविता संग्रह ' माँ के साथ ' से कुछ कवितायें
कुछ व्यस्तताओं के कारण 'अखराई' एवं उसके सहयोगी ब्लॉग ‘बचपना' पर हर महीने अपने रचना संसार से कुछ चुने हुए मोती साझा करने का वर्षों से चला रहा अटूट सिलसिला पिछले कुछ महीनों थमा रहा । अब समय है उस क्रम को फिर से आगे बढ़ाने का ! बहुत धन्यवाद इस बीच याद करने और याद कराने के लिए कि यह यात्रा सतत अनवरत चलती रहनी चाहिए ।
इस बार अपने आनेवाले कविता संग्रह ' माँ के साथ ' से आकार में
छोटी परंतु भाव प्रभाव संभाव में बड़ी कुछ कवितायें प्रस्तुत कर
रहा हूँ
प्रेम रंजन अनिमेष
उपस्थिति
गेंदड़े में
खुँसी है
सुई
माँ होगी
यहीं कही...
संसार का सबसे बड़ा झूठ
µ
ईश्वर के
बारे में
कोई कहता
तो क्या पता
मान भी लेता
शायद कहीं
इतनी
बेमानी सी
बेमतलब की
कोई
बात
आज तक
नहीं
किसी ने
कही
दुनिया का
सबसे बड़ा
झूठ है
यही
कि माँ
अब
नहीं
रही...
µ
( शीघ्र प्रकाश्य कविता संग्रह ' माँ के साथ ' से )
इसी की दृश्य श्रव्य प्रस्तुति इस लिंक पर देखी सुनी सराही जा सकती है :
✍️ प्रेम रंजन अनिमेष
बुधवार, 31 अगस्त 2022
रहने दे...
'अखराई' के
इस भाव पटल पर इस बार साझा कर रहा हूँ अपने आने वाले कविता संग्रह ' अंतरंग
अनंतरंग ' से अपनी
यह कविता ‘रहने दे...’ । आशा है
पसंद आयेगी
~ प्रेम रंजन अनिमेष
रहने दे
µµ
पहले पहले
होंगे कितने
पर आखिर में
तू ही रहेगा
मेरे लिए
मैं तेरे लिए
अगर जिंदगी
दोनों को
रहने दे
उतने दिन
रहने दे
साथ साथ
रहने दे...
( आगामी
कविता संग्रह ' अंतरंग अनंतरंग ' से )
µ
इसी कविता की दृश्य श्रव्य प्रस्तुति इस लिंक पर देखी सुनी सराही जा सकती
है :
✍️ प्रेम रंजन
अनिमेष